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Krishna Sinha

Abstract

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Krishna Sinha

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ये जमाना

ये जमाना

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शिकायतों से कब किसने

पायी है मुक़्क़मल जगह,

जरा उनकी झूठी तारीफ तो कीजिये,

फिर देखिये,

झंडे गाड़ दिए जिसने

कई अखाड़ों में,

अपने ही घर

उसका हश्र तो देखिये,

नाकारा घोषित है

वो हर शख्स,

जिसने हुक्मरानों के

खिलाफ उठायी आवाज देखिये,

ना दिखाओ उनको,

अपने रिसते जख्मों को,

पोंछ लो हर बार,

फिर कैसे पाते हो उनकी

"वाह वाह " देखिये

अंदाजे गुरूर पद का

इस कदर है हावी,

ये सच स्वीकारने की

हिम्मत भी नहीं,

गम हमारे करेंगे दूर,

ये कहते है देखिये,

उनकी अय्याशी के किस्से

मशहूर है ज़माने भर में,

एक शख्स स्वीकार ले

जो सामने उनके,

ढूंढ़ लीजिये चिराग ले के,

ना मिलेगा देखिये,

मजे की बात उस पर

ये है जनाब,

पीठ पीछे ना कहता हो

जो किस्से उनके

ऐसा भी एक ना होगा

शहर में शख्स देखिये

मेरे शब्दों को पढ़ने वाला,

कोई मुस्कुरा रहा होगा,

कोई तिलमिलाएगा, देखिये

गर हलकी सी भी

शिकन की रेखा

बन आयी तुम्हारी पेशानी में,

तुम्हारा ऐब तब

तुम्हें पता है, देखिये,

जिंदादिली से स्वीकार लीजिये,

तो खामी वो अपनी,

और जिंदगानी में,

सुकून का मज़ा लीजिये

हर एक शख्स

करता है यहाँ,

अपनी तारीफ खुद से,

दूसरों की तारीफों में,

छा जाओ "इतु "

अपना वो कहिनूर सा

हुनर खोजिये



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