यादों के ख़त
यादों के ख़त


बंद लिफ़ाफ़े में
ख़तों जैसी
चंद यादें है
कुछ तेरी हैं
कुछ मेरी हैं
और कुछ
हम दोनों की।
एक स्कूटर
किराए का
दो कमरों का
छोटा सा घर
सुबह से शाम
भटकना दर दर।
एक दराज़ में
पैसे रोज़ रखना
गिन गिन कर
जलती गरमी
यूँ पसीने से तर
कभी रात तो
कभी भागना दिन भर।
बहुत दूर आ गए
यूँ ही भागते
इन रास्तों पर
लेकिन आज भी
जब ये बंद लिफ़ाफ़े
खुल जाते हैं
हमसे ही फिर
पहचान हमारी
कर जाते हैं !