यादें
यादें
यादें बेहद ख़तरनाक होती हैं
अमीना अक्सर कहा करती थी-
आप नहीं जानती आपा
उन लम्हों को,
जो अब अम्मी
के लिए यादें हैं...
ईशा की नमाज़ के वक़्त
अक्सर अम्मी रोया करतीं
और माँगतीं ढेरों दुआएँ,
बिछड़ गए थे
जो सरहद पर,
सैंतालीस के वक़्त,
उनके कलेजे के टुकड़े
उन लम्हों को आज भी
वे जीतीं,
दो हज़ार दस में,
वैसे ही जैसे था मंज़र
उस वक़्त का ख़ौफनाक
भयानक,
जैसा कि अब
हो चला है अम्मी का
झुर्रीदार चेहरा,
एकदम
भरा सरहद की रेखाओं
जैसी आड़ी-टेढ़ी कई रेखाओं
से बोझिल, निस्तेज और
ओजहीन !