यादें
यादें
धुंधली सी इन यादों में
तेरे चेहरे के सायें हैं
इन सायों की परछाइयों में
तुम्हें पाने के सपने हैं।
यादों की इन गलियों में
हर मकान तेरा है
मेरी मंजिल अब यही
यही मेरा मुकाम है।
यादों की ये अनजान गलियाँ
जाने किसकी राह देखती
चाँद तो कब का डूब गया
फिर भी आसमान को निहारती।
अमावस्या का ये काला आसमान
शायद यही याद दिलाता है
किसी के ख़्वाबों का चाँद मुक़म्मल
तो किसी के सपने ही अधूरे हैं।
अधुरे से इन सपनों की
अब ये ही दास्तां है
तुम्हारी इन यादों में ही
अपना घर बसाना है !

