यादें
यादें
वो बचपन की गलियाँ
छोटी लड़ाइयाँ
वो रूठना और कट्टी हो जाना
गर्मी की छुट्टीयो में नानी के गाँव
वो आम के बाग़ीचे से, छुपकर
आम चुराना
दोपहर की गर्मी में बाग़ीचे में ही
आम के गिरने कि इंतज़ार में वहीं सो जाना
वो बरगद के पेड़ पर झूला लगाना
वो तालाब के पानी में
बिना डरे डुबकी लगाना
वो गायों कि पीछे -पीछे
थोड़ी दूर तक निकल जाना
शाम को बिजली के जाते ही
वो लालटेन के घेर में नानी
की कहानियाँ सुनते -सुनते
वहीं सो जाना
वो बचपन क़ी यादें ..!
थोड़े बड़े क्या हुए
वो पड़ोस में रहने वाले को
घंटों छुप- छुप कर निहारना
क़भी नज़रों का मिलना और
वो पर्दे के पीछे छुप जाना
वो उसका भी छुप कर देखना और नज़र
मिल जाये तो शर्म से यूँ लाल हो जाना
वो आकर्षण या मोहब्बत है
बिना ये जाने
उस प्यारे अहसास में रहना
उसको लेकर ज़िंदगी के नए सपने सजना
नही भूलूँगा मै, वो अल्हड़पन
और लड़कपन की यादें..
फ़िर क़िसी के सच्चे मोहब्बत में
वो कसमें वो वादे
उन यादों में उनके ख़्यालों में
खुद ही मुस्कुराना और शरमाना
उसके बिछड़ने के बाद यूँ ही
यादों की तन्हाई में खोए रहना
उसके आने का इंतज़ार करना
और फिर ज़िंदगी के कड़वाहट
को स्वीकार कर
नयी यादें बनाने की
कोशिश में मगन हो जाना
उम्र के इस मोड़ पर
संसार के इस भीड़ में ख़ुद को खो देना
उन यादों के सहारे फिर से
नयी यादों को जोड़ने में गुम हो जाना
वो यादें।