याद तुम आते हो
याद तुम आते हो
कहती हूँ मैं दिल की बातें तुम भी दिल से ही सुनना
याद बहुत ही तुम आते हो और नहीं है कुछ कहना।।
मैं तो हूँ इक टूटी नौका बीच भँवर में अटकी हूँ,
मन का चप्पू पाने ख़ातिर मैं तो हर पल भटकी हूँ।
हे प्रिय! ये जीवन अब तो बोझिल लगता है तुम बिन,
मन की लहर किनारा चाहे सागर ठगता है तुम बिन।
खारे पानी जैसा बन के और नहीं मुझ को बहना
याद बहुत ही...।।
दर्पण में मैं अक्स निहारुँ रूप तुम्हारा दिखता है,
धूप छाँव की इस दुनिया में प्रेम हमेशा फलता है।
पागलपन की हद में देखो मीरा कहते लोग मुझे,
राधा रानी कृष्ण तुम्हारी इश्क हकीकी रोग मुझे।।
डोर टूटती साँसों की अब रूह "पूर्णिमा" सँग रहना
याद बहुत ही...।।