व्यथा
व्यथा
मैं आज खामोश हूँ
पर कलम दौड़ना चाहती है
कुछ कहने की इच्छा नहीं
पर शोर करना चाहता हूँ।
कुछ सुनाना भी नहीं किसी को
पर सुननेवालो की भीड़ चाहता हूँ
ये कैसी व्यथा है कि
मैं खामोश हूँ और
कलम दौड़ रही है...!
जानता हूँ कि धरती घूम रही है
पर सब स्थिर कर
मैं घूमना चाहता हूँ !
ऐसा नहीं है कि आज
पहली बार यूँ बिखरा हूँ
पर आज की ख़ामोशी अलग है
कुछ है जो बाहर आना चाहती है
पर मैं अन्दर रखकर ही
खुश होना चाहता हूँ !
मैं आज फिर खामोश हूँ और
कलम दौड़ना चाहती है...!