तू है ना, काफ़ी है
तू है ना, काफ़ी है
यूँ आज क़दम रुक से गये
कि ये हवा कहीं तुमसे मिल के ना आयी हो
जो टकरायी स्थिर सी कर गयी वो
यादें जो गर्म हो गयीं हो जैसे..
शीत में शील सा..
मिटने में मीत सा, अहसास ये कैसा
गत विगत, अहसास ये सतत कैसा..
मन की ये भीत या भ्रांति,
कटती ये शान्ति..अंतः मन, अंततः ये मन,
ये यादों की तरलता..सरलता..सरसता,
ऐसे में चाह में, भाव में, ..यूँ ही राह में
तुम्हें रोकूँ कैसे, तुम्हें जियूँ न कैसे...
तेरी याद पे कुछ हक़ रखूँ ना कैसे..
तुम भी ना.. बस, सिमटी दर्द सी..
वहीं ज़िंदगी की धुन सी ..