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Bindiya rani Thakur

Tragedy

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Bindiya rani Thakur

Tragedy

व्यथा

व्यथा

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क्यों मन इतना विचलित हो जाता है,

क्यों गाहे -ब -गाहे यह शोर मचाता है, 

एक इसके चिल्लाने से यहाँ कुछ नहीं बदलने वाला है,

क्यों इतनी सीधी सी बात मेरा मन समझ नहीं पाता है।


यहाँ क्यों सरेआम छेड़खानियां होती हैं

यहाँ क्यों बलात्कारों के सिलसिले रूकते नहीं हैं 

यहाँ क्यों दहेज की बलिवेदी पर चिताएँ सजती हैं

मेरे मन में बार-बार यही सवाल उठता है

एक मेरे सोचने भर से कहाँ कुछ बदलने वाला है..


 


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