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M kumar Rao

Tragedy

4.5  

M kumar Rao

Tragedy

व्यथा हिन्दी की

व्यथा हिन्दी की

2 mins
442


हमें माँ जो पहला शब्द

सिखलाती है

वो हिन्दी ही होती है

मतलब जो हमारा पहचान

बनाता है

अपनों के बीच सम्मान

दिलाता है


तो फिर झिझक उसे

बोलने में क्यों हो जाता है

चंद पैसों के ख़ातिर

क्यों उसका अपमान सह

जाते हैं


क्यों हिंदीभाषी को गैरों

से नीचे कर जाते हैं

क्यों हम जो अपना नहीं है

बैठा सर पर उसे रूठ मचलते हैं


एक बात है जो दिल के कोने में

हमेशा खटक रह जाती है

आजादी के 75 साल बाद भी

क्यों हम आजाद नहीं हो

पाते हैं


क्यों हम मातृभाषा को दिल

से लगा ना पाते हैं

क्यों बच्चों को हम मुश्किल

शब्दों का जाल थमा जाते हैं

जिसमें फंसकर वो अपना

बचपन गँवा जाते हैं


क्या मातृभाषा में विकास

सम्भव नहीं है

माना पैसे कम है पर

क्या इतना कम है जो

जीने को पर्याप्त नहीं है

या केवल दूसरे भाषा में

ही ज्ञान बचा क्या

अपने भाषा में कुछ भी शेष

नहीं रहा क्या


ग़र थोड़ी ज़मीन अभी भी

मातृभाषा रूपी पौधे को मिल जाता

सींच समाज उसे ही विराट

कर जाता

लेकिन अफसोस ऐसा हो

ना सका 


पहचान राष्ट्र का बन ना सका

हो प्रिये कोटि जनों का

फिर भी रह राष्ट्रभाषा कहला

ना सका।


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