वटवृक्ष
वटवृक्ष
दूर कहीं एक नदी किनारे छोटे से गाँव में,
बैठा करते एक महात्मा बरगद की छाँव में
ज्ञान का सागर लिए हुए थे वो मस्तिष्क में
जैसे बांट रहे हो अमृत कल़श हर शिष्य में
हर दिन ग्रामीणों को पास बिठाया करते थे
हरदम उन्हें जीवन का पाठ पढ़ाया करते थे
वहाँ ज्ञान की गंगा अविरल बहाया करते थे
सीखो इस बटवृक्ष से ये कितने काम का है।
गुणों की खान और सभ्यता की पहचान है ये
हिंदुओं की आस्था और विश्वाश है वटवृक्ष ये
देवी देवताओ सा तुल्य पुज्यनीय है ये युगो से
औषधियों गुण भरे है इसमें प्रचुर मात्रा में।
ठंडी ठंडी सी छाँव देता यात्रियों को यात्रा में
अपना अस्तित्व बनाए रखता है सदियों तक
मर भी जाए तो अपनी जड़े छोड़ जाता है वो
फिर से अपना अस्तित्व बनाने में सक्षम है वो।
अब बनाओ तुम भी अपनी जगह इस जहान में
ना बनाओ खुद को लाचार पशु समान जहान में
हाँ मेरी मानो तो तुम कुछ सीखो वटवृक्ष महान से।