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Sheetal Raghav

Abstract Tragedy Inspirational

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Sheetal Raghav

Abstract Tragedy Inspirational

वसुंधरा

वसुंधरा

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वासुधैव कुटुंबकम,

पर जहां वसुधा नहीं खुश, 

वहां कैसा कुटुंब, 

वसुधा पर तो, 

मानव हर दिन, 

कर रहा घात है,

पहुंचाकर कष्ट, 

वसुधा को,

करता उस पर आघात है, 

अत्याचार की तो,

अब इंतहा हो गई, 


जब प्रकृति, 

अपने बच्चों रूपी,

पेड़ पौधों से, 

जुदा हो गई, 

कितने अत्याचार, 

धरती मां पर कर डाले, 

उसके हरे-भरे वृक्ष, 

और खुशहाली के, 

जंगल सब काट डाले, 


मानव, 

पैसे की धुन में, 

हो रहा क्यों ?

इतना पागल है, 

कम होती प्राणवायु, 

ऑक्सीजन का, 

वह खुद ही तो कारक है, 

अज्ञान है, 

या,

लोभ में, 

आकर कर रहा है, 

जंगल का खात्मा, 

इसका क्या कारण है?


वसुधा, 

अगर सूख जाएगी।

प्राणवायु,

हमें कैसे ?

मिल पाएगी, 

होकर मूर्छित, 

तब कैसे प्राणवायु पाएंगे,

जब अपनी ही धुन में, 

पेड़ों को काटते जाएंगे,

आज चारों तरफ,

सिर्फ त्राही - त्राही  है, 

प्राणवायु नहीं,

किसी को?

मिल पा रही है,


आज चारों तरफ, 

सिर्फ त्राहि-त्राहि, 

और हाहाकार है,

यह सब, 

अपने किए कर्मों का,

चमत्कार है,

प्राणवायु, 

नहीं मिल पा रही है,

इसका ही, 

चारों तरफ शोर जारी है, 


आज, 

अभी भी,

चेतन हो जाओ, 

वसुधा पर ना, 

आघात करो,

पेड़ पौधे, 

अनगिनत लगाओ,

सच मानो,

यह पेड़-पौधे ही, 

हमारा जीवन है, 

जो धरा पर, 

बांधे जल, 

और, 

हमारा जीवन है।


देकर पौधों को जीवन, 

वसुधा को, 

प्रसन्न कर जाओ, 

वसुंधरा है,

जीवनदायिनी, 

पर उसके लिए ! 

हे मानव ! 

कुछ नेक काम करो, 

और करवाओ,

जाकर जंगल - जंगल,

और, 

किनारे सड़क के, 

तुम पेड़ों की, 

श्रृंखला लगाओ, 

वातावरण शुद्ध हो जाएगा, 


ऑक्सीजन, 

प्राणवायु का, 

स्तर बढ़ जाएगा,

फिर ना कोई, 

मानव, 

ना ही, 

जानवर,

प्राणवायु की किल्लत से, 

प्राण ना अपने त्यागने पाएगा, 

तब,

वसुधैव कुटुंबकम,

सही मायने में कहलाएगा ।।






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