Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Chandresh Chhatlani

Abstract

5.0  

Chandresh Chhatlani

Abstract

वस्त्र

वस्त्र

1 min
285


कैसा आदर्श स्थापित करते हैं वस्त्र !

उतरते हैं जब वस्त्र वैश्यालय में 

कहलाते हैं निर्लज्ज

हो जाते हैं गंदे। 


लेकिन जब उतरते हैं ये

किसी पवित्र नदी के घाट पे

कहलाते हैं पावन स्नान

हो जाते हैं स्वच्छ।


और जो दिशाओं को

आकाश मान लो तो

वस्त्र हो जाते हैं पृथक

और निर्वस्त्र आदमी संत।


सच ! नग्नता में वस्त्र और

वस्त्रहीन के मायने शून्य ही तो हैं।

सोचते हैं कैसे हम

वही समीकरण गणित का

बन जाता है सामाजिकता।


कहाँ नग्नता छिपी है

यह नहीं सोचते हम

या जानकर भी

बनते अनजान हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract