Vijay Kumar

Tragedy

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Vijay Kumar

Tragedy

वर्षो बाद

वर्षो बाद

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वर्षो बाद जब गाँव जाना हुआ

न जाने क्यों हर एक घर वीराना हुआ

जिन खेत खलियानो में था कभी खिलखिलाना

वहां तो मिला पशु- पक्षियों का आशियाना।


जिन गलियों में था कभी बच्चों का मुस्करान

वहां तो रहा ही नहीं अब किसी का ठिकाना

जिन रस्तों पर चलकर था बचपन बिताया

वहाँ तो बस कांटेदार झाड़ियों को ही पाया।


जब शहर-शहर का इतना विकास हुआ

तब गांव के ये हालात देखकर दु:ख हुआ

वर्षो बाद जब गाँव जाना हुआ

न जाने क्यों हर एक घर वीराना हुआ।


जिन घर -आंगन में थी पंछियों की चाहचहट

वहां तो सुनाई दी दर्द और दु:ख की आहट

जिन चेहरो पर खिली रहती थी मुस्कुराहट

उन चेहरो पर दिखी उदासी और घबराहट।


जो स्थान रहता था बच्चों से भरा हुआ

वहां कुछ न मिला दु:ख-दर्द के सिवा

वर्षो बाद जब गाँव जाना हुआ

न जाने क्यों हर एक घर वीराना हुआ।


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