वृंदा
वृंदा
वृंदा बन जन्मी राक्षस कुल परिवार में
जालंधर नामक राक्षस से शादी हुई उसकी
पतिव्रत धर्म का पालन करती हर पहर
उसके इस पुण्य प्रताप से
जालंधर की बढ़ती शक्ति
करता रहता देवों पर प्रहार
चारों लोक में मच गया जब हाहाकार
सभी देव गए भगवान विष्णु के पास
कर विनती उनसे कहा ,बचा ले उससे
खत्म कर दे जालंधर को करके वार
भगवान विष्णु ने तप वृंदा का भंग किया
जिससे खत्म हुई जालंधर की शक्ति
और किया उसपर वार
ये सब जान कर वृंदा हुई अत्यन्त क्रोधित
क्रोध वश श्राप दिया विष्णु को
बना दिया शालिग्राम
क्रोध जब शांत हुआ वृंदा का
हुआ उसे भूल का ज्ञान
और किया उनको श्राप से मुक्त
तब भगवान विष्णु ने वृंदा को
तुलसी का नाम दिया
और अपनी पत्नी के रूप में
उनको अपने पास स्थान दिया
नारायण को अतिप्रिय है तुलसी
बिन तुलसी के भोग लग नहीं सकता
ये वरदान दिया तुलसी को
और दिल में स्थान विशेष दिया।