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Hiren Shah

Abstract Classics Inspirational

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Hiren Shah

Abstract Classics Inspirational

बहोत है

बहोत है

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यूं तो गैरों से तेरी पहचान बहोत है,

मगर खुद से अभी तू अंजान बहोत है।


नहीं समझ पाता इन दुनिया की रस्मों को,

ये दिल अभी नादान बहोत है।


छोड़के गाँव जो बस गए है शहरों में,

उन्हें क्या मालूम गाँव के आँगन वीरान बहोत है।


बहुत भीड़ मिली झूठ की राहों पर,

सच की राहें सुनसान बहोत है।


दर्द, बेचैनी, बेकरारी यहीं सब तो मिलता है,

प्यार के सौदे में यार नुकसान बहोत है।


ज़मीं पर रहकर ख्वाब आसमान के देखता है,

इस दिल के भी अरमान बहोत है।


क्या सुलझाएंगे लोग उलझनें दूसरों की,

हर शख्स यहाँ खुद से ही परेशान बहुत है।


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