ज़िंदगी
ज़िंदगी
ज़िंदगी इतनी खास लगती है क्यो,
जब साथ नहीं है कोई अपने तो
ज़िंदगी इतनी उदास लगती है क्यों..!
जब अच्छा वक़्त हो तो साथ देनेवाले सब है,
बुरे वक़्त में मदद करनेवाले बस रब है,
न जाने ज़िंदगी वक़्त से नाराज़ लगती है क्यो..!
हजारों चिराग रोशन थे ज़िंदगी में,
की आँधियों ने आकर उसे बुझा दिये,
फिर भी ज़िंदगी को हर पल
एक नए दिये जलने की आस लगती है क्यो..!
मुश्किल बहुत थी राहों में,
कांटों की राहों से गुजर कर फूलों के
बिस्तर तक पहुँचा हूं,
ख़ुशियाँ सारे जहां की ज़िंदगी के पास
लगती है क्यो..!
बीत गए कुछ हसीं लम्हें पास रहे कुछ हसीं लम्हें,
बहुत भाग लिया ज़िंदगी से दूर,
अब ज़िंदगी को जीने की ख़्वाहिश लगती है क्यो..!
अकेलापन कोसता है ज़िंदगी को,
तन्हाई अब सही नहीं जाती,
इस ज़िंदगी को एक नई ज़िंदगी की
तलाश लगती है क्यो..!
