वृक्षारोपण
वृक्षारोपण
बहुत से बिछड़ गए,
अपने जानने वाले भी,
कोरोना महामारी का,
अब भी रुकने का नाम नहीं।
ना जाने कितने और,
लीलेगा ये काल ?
या तो भस्म हो ये प्रलय,
या आ जाए भूचाल।
क्यूँ तिल - तिल मरें,
अपनो के गम में यूँ रोज़,
खत्म ये किस्सा हो एक साथ,
नहीं बनना और धरा पर बोझ।
जीने की लालसा ,
कर्मों का व्यापार,
सब बिक रहा यहाँ,
ऑक्सीजन की हाहाकार।
मनुष्य अपनी गलती पर ,
अब रो रहा बार - बार,
क्यूँ वृक्ष काटे उसने,
जो सींच रहे थे संसार।
आने वाली पीढ़ी ....
याद रखना मेरा ये संदेश,
मैं कल रहूँ या ना रहूँ ,
वृक्षारोपण से चमके ये देश।।