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VIVEK ROUSHAN

Tragedy

3  

VIVEK ROUSHAN

Tragedy

वक़्त

वक़्त

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वक़्त से मैं आँखें मिलाने लगा

मेरी ये निडरता

शायद वक़्त को रास न आई

वक़्त ने मुझे फिर तोड़ना चाहा

मेरे हिस्से में धूप तो आई

पर कभी छाँव न आई

मैं धूप के साथ चलता रहा

गिर-गिरकर संभलता रहा

एक छाँव की तलाश में

दर-ब-दर भटकता रहा

वक़्त की गहरी उदासीनता ने

मुझको निढाल कर दिया

न जाने वक़्त ने मुझसे

ये कैसा सवाल कर दिया ?


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