मैं धूप के साथ चलता रहा गिर-गिरकर संभलता रहा। मैं धूप के साथ चलता रहा गिर-गिरकर संभलता रहा।
वक़्त से शिकायत थी जिनको आज ना जाने मौन क्यों हैं! वक़्त से शिकायत थी जिनको आज ना जाने मौन क्यों हैं!
यहाँ तुझे भूलने की कोशिश में मैं वहाँ और याद आ रहा हूँ । यहाँ तुझे भूलने की कोशिश में मैं वहाँ और याद आ रहा हूँ ।
खामख्वाह ही शिकायतें वक़्त की करता है तू, बस तेरा कर्म ही तेरा अच्छा वक़्त लाएगा। खामख्वाह ही शिकायतें वक़्त की करता है तू, बस तेरा कर्म ही तेरा अच्छा वक़्त लाएग...
ऐ जख़्म ए ज़िन्दगी, तूने इस लेखक को ढूंढ ही लिया, तेरा शुक्रिया। ऐ जख़्म ए ज़िन्दगी, तूने इस लेखक को ढूंढ ही लिया, तेरा शुक्रिया।