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Anita Sharma

Tragedy

4.2  

Anita Sharma

Tragedy

वक़्त कम है

वक़्त कम है

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वक़्त से शिकायत थी जिनको 

आज ना जाने मौन क्यों हैं,

देखो तो रुका कुछ भी नहीं 

फिर भी ज़िन्दगी थम सी गयी है,

सन्नाटों को चीरती 

कुछ आवाज़ें का शोर 

धीमे स्वरों में लोगों का कहना पुरजोर

शायद फिर कोई ख़त्म हो गया है, 

कहाँ गया वो उम्मीदों का सवेरा 

भोर हुई कि ज़िन्दगी दौड़ लगाती थी 

वक़्त की शिकायत होती तो थी पर 

माथे पर ऐसी शिकन ना आती थी, 

थकान तो थी 

पर ज़िन्दगी मुस्कुराती थी, 

कौन हैं ज़िम्मेदार इस बदलाव का 

कैसे वक़्त ने करवट बदल दी 

आज भी हम भाग रहे हैं, 

लेकिन उस मौत के डर से 

ये खौफ जिसका 

हर तरफ बोलबाला हैं 

ज़िम्मेदार हैं हम,

शायद हमने ही इसे पाला है 

वक़्त कहता है 

ये आहट है विनाश की

कि संभल जा वक़्त रहते ए इंसान 

अपने ही विनाश का कारण ना बन 

वरना पछताने के सिवा 

क्या रह जाएगा

वक़्त कम है,मत विध्वंस फैला

वरना वक़्त शायद इतना भी वक़्त ना दे 

कि तू ढूंढ पाए अपनी पहचान भी!




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