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aazam nayyar

Abstract

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aazam nayyar

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वफ़ा मैं ढूंढ़ रहा हूँ

वफ़ा मैं ढूंढ़ रहा हूँ

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हर किसी में ही वफ़ा मैं ढूंढ़ रहा हूँ !

कोई ऐसा आशना मैं ढूंढ़ रहा हूँ


जो अंधेरे दूर ग़म के ही करे हैं

वो ख़ुशी की चांदनी मैं ढूंढ़ रहा हूँ 


जिंदगी भर जो वफ़ा की ताज़गी दें 

वो गुलों में शबनमी मैं ढूंढ़ रहा हूँ 

  

भूल गया हूँ उसके घर का रास्ता मैं 

शहर में उसकी गली मैं ढूंढ़ रहा हूँ 


भूल जाऊं बेवफ़ा जो एक चेहरा

गांव में वो मयकशी मैं ढूंढ़ रहा हूँ 


प्यार के ही दें सहारे जिंदगी भर 

हर चेहरे में आशिक़ी मैं ढूंढ़ रहा हूँ 


इसलिए "आज़म" भटकता फिरता है 

एक सच्ची दोस्ती मैं ढूंढ़ रहा हूँ ।


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