वफ़ा का इकरार
वफ़ा का इकरार
वफ़ा का इकरार कैसे करूँ
कहो तो काट डालूँ
शरीर की सबसे बड़ी शिरा
जो सीधे हदय से जकर मिलती है
बूँद-बूँद से एक ही नाम उभरेगा
तब मानोगे ?
नहीं आता हमें इश्क जताना,
तुम आँखों की भाषा समझते नहीं
हमें चोंचले आते नहीं,
तुम्हारे दिल की दहलीज़ पर
रख तो दिया कलेजा निकलकर,
अब धड़कन की धुन तुम
ना पहचान पाओ तो क्या करूँ?
कहते हैं आज वैलेन्टाइन दिन है
दो चाहने वालों की चाहत को
हवा देता है,
मैं एलान ए इश्क कर दूँ
तुम इज़हार ए मोहर मल दो,
अब इससे ओर खुलकर
इकरार नामें पर क्या रख दूँ।