वो
वो
किसी घर में लड़की पैदा होती है
उस घर की एक लक्ष्मी होती हैं वो
माँ की आंखों का काजल,
पिता की दुलारी होती है वो
मुसीबतें आती है व जाती है
पर्वतों से टकराने वाली,
मेघों की कहानी होती है वो
भाई पर आंच न आने देती है
उसकी सच्ची सहेली होती है वो
मौका कोई भी हो,अपनों के लिये
ख़ुद का भी दिल तोड़ देती हैं वो
कहा जाता है उनको कोमल व नाज़ुक
फिर भी पत्थरों पर निशां कर देती हैं वो
संसार की रीत के लिये
पिता की खुशी के लिये
परायों को भी अपना मान लेती है वो
किसी की पत्नी जब वो बन जाती है
ख़ुद को भुलाकर,
हरबार दूध का पानी बन जाती है वो
होंसला इतना की आसमां को झुका दे
पुरुषों की सच्ची पहचान होती है वो
ख़ुदा भी उसे क़भी जान न पाया है
मोम को भी फ़ौलाद बना देती है वो
सबकी खुशी में इतनी तल्लीन हो जाती है
अक्सर खुद का ही अस्तित्व भूल जाती है वो
फ़िर भी ज़माने की रीत देखो
अच्छाई पर बुराई की जीत देखो
कुलदीपक वह कहलाता है
गर्भ में ही मारी जाती है वो।