वो
वो
वो हर रोज़ मुझे आईना दिखा देता है
मैं बस एक ख्याल हूँ
जता देता है
पूछती हूँ जब भी
बता मैं कितनी हूँ शामिल तुझ में?
वो हँस के मुझसे
नजर चुरा लेता है।
झूठ-मुठ का दिखा कर गुस्सा
मेरे सवालों पर,
रूठ कर मुझसे
मुझे चुप करा देता है।
छोड़ देता है हर बार तन्हा
मुझे मेरे ही साथ
वो अक्सर इस तरह
मेरा साथ छोड़ देता है।
सवालों की सलीब पर सुलगती मैं
वो अपनी खामोशी की तीली से
मुझे जला देता है।
भीड़ में रह कर भी
मैं गुज़र जाती हूँ अक्सर उसके पास से
और वो फिर भी मुझे
मेरे साथ न नजर आता है।

