वो सतरंगी पल
वो सतरंगी पल
वो सतरंगी पल
कहीं हो जाए न ओझल
पलकें मूंद लूँ मैं।
दिल में लगा के ताले
साथ बीताए दिन खुशियों वाले
कैद कर लूँ वो दिन चंचल
वो सतरंगी पल
कहीं हो न जाए ओझल
पलकें मूँद लूँ मैं।
कोयल ने छेड़े थे राग बसंती
देखी थी तेरी आशिकपंती
वादों की भी, मिलन की भी
सुहाने थे पल
कहीं आँखों से हो न जाए ओझल
वो सतरंगी पल।

