वो सतरंगी पल
वो सतरंगी पल


सावन की पहली बारिश ने तुम्हारी यादों की दस्तक दी है,
मन- धरा पर तुम संग बीते लम्हों की सुनहरी धूप छाई है।
यादें सता रही सावन की पहली बारिश की,
आते ही ठंडी - ठंडी रिमझिम बरखा के खींच लिया था
तुमने मुझे चुपके से, भर लिया था गर्म आगोश में अपनी,
टकराई जब गर्म सांसें , सुर्ख होंठ मेरे फड़फड़ाए कुछ
कहने को, ना कहने दिया कुछ भी , टकरा दिए जाम अधरों के।
खेलने लगी उंगलियां तुम्हारी कस्तुरी से मेरी,
कानों में मेरे गुनगुना रहे थे तुम ,
शफ्फ़ाक बदन को जब समेटा था तुमने बाहों में,
स्पंदन सा हुआ मेरे तन- मन में ।
टूट कर बिखर गई थी बांहों में तुम्हारी,
रूक गई थी सांसें पल भर
चर्म- सीमा का आनन्द लेने को।
याद आ रहे हैं वो संतरंगी पल, बिन तुम्हारे अब
ना कटे ये घड़ियां , कब आएगा वो समां सुहाना,
होगा जब फिर से हमारा मिलन ।
अब के आओगे तो फिर ना जाने दूंगी मैं तोहे सजन,
आ फिर से लौटा दे मेरे वो सतरंगी पल।