वो प्यार था, या छलावा तेरा
वो प्यार था, या छलावा तेरा
वो प्यार था, या छलावा तेरा,
वो परवाह थी, या दिखावा तेरा।
हम करते रहे यकीन तुझपे, तू छलता रहा,
कितना फरेबी था, झूठी मोहब्बत का दावा तेरा।
परखता रहा बार-बार मैं, अपने ऐतबार की अहमियत,
पर हर बार बेवफाई ही करता रहा वो, मासूम चेहरा तेरा।
कितनी आसानी से कह दिया, तुमने तो चंँद लफ्ज़ों में,
कि मोहब्बत नहीं है तुमसे, क्या झूठा था, हर वादा तेरा?
क्यों नक़ाब पहनकर, खटखटाया था, दिल का दरवाजा,
क्यों दिल में आकर बसे, जब कहीं ही और था बसेरा तेरा।
नफ़रत ही कर लेते, क्यों मोहब्बत का एहसास जगाया?
क्यों इबादत का नाम दिया, जब कहीं और था, खुदा तेरा।
तुम चले गए यूंँ डूबाकर कश्ती, दरिया-ए-मोहब्बत में,
हार गई, मेरी मोहब्बत, और जीत गया वो धोखा तेरा।

