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Vivek Agarwal

Romance Tragedy

4.9  

Vivek Agarwal

Romance Tragedy

वो काश कुछ कह कर जाती

वो काश कुछ कह कर जाती

1 min
337


वो काश कुछ कहकर जाती

जो मन में था होंठों पर लाती

वो काश कुछ कहकर जाती


अंतर्मन में आशंका थी

या कोई मजबूरी

आखिर क्या हुआ उन दिनों

जो बढ़ गयी इतनी दूरी

जो भी था, जैसा भी था

मुझको तो बतलाती

वो काश कुछ कह कर जाती


कहने को तो कई दिनों की

थी अपनी पहचान

फिर भी एक दूजे से हम थे

काफी कुछ अनजान

थोड़ा और साथ चलते तो

समझ और हो आती

वो काश कुछ कह कर जाती


विस्मृत नहीं हुआ आज तक

वो दिन जब लम्बी राह तकी

आखिर क्या हुआ था जो वो

वादा करके भी आ न सकी

आने में संकोच अगर था

चिट्ठी तो भिजवाती

वो काश कुछ कह कर जाती


अनुत्तरित प्रश्नों की चुभन

दिल में है आज भी रहती

अक्सर सोचा करता हूँ मैं

उस दिन वो क्या कहती

जरा देर की बात थी आखिर

एक बार मिल जाती

वो काश कुछ कह कर जाती

वो काश कुछ कह कर जाती



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