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वो दिन

वो दिन

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वो दिन

आज भी याद आता है।


जब उससे कुछ बोला था,

मन में छुपा राज़ खोला था,

वो हल्का-सा शर्मायी थी,

वो थोड़ा-सा मुस्कुरायी थी।


शायद मेरा गलत सवाल था,

जवाब बेशक़ उसका कमाल था,

वो खो कर पाना चाहती थी मुझे,

उसको मेरे बिना न कोई और सुझे।


हाँ! उदास था मैं,

अपने इश्क़ के अंत के पास था मैं,

दिल रो रहा था,

कोई दूर हो रहा था।


मैंने साहस का ध्यान दिया,

उसके उत्तर का मान दिया,

विपक्ष प्रकृति थी उस दिन,

जीवन की ऐसी रीति थी उस दिन।


प्रिये!तेरा प्रेमी जा रहा है,

तुझे खो के हार पा रहा है,

गुमनाम-सा हो जाएगा,

सरेआम बदनाम-सा हो जाएगा।


अपनी मोहब्बत का इज़हार किया था,

तुझसे बेशूमार प्यार किया था,

क्या अब वापिस आएगी तू,

मेरा साथ निभाएगी तू?


अंत मैं कलम रुक जाती है,

आँखे भर आती है,

मन शून्य-भ्रमण में चला जाता है,

वो दिन आज भी याद आता है।


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