ठहरे हुए पल..
ठहरे हुए पल..
पल..वो जो बीते हुए
नहीं बीतते कभी
बीतकर भी
ठहरे ही रह जाते हैं
यहीं-कहीं
थोड़ा कुछ तुझमें
थोड़ा कुछ मुझमें !
कभी सेक में नरम धूप की
कभी बारिश के गीलेपन में
कभी तारे बन
झांकें ऊपर से
कभी बतियाएं हव संग ये
और..ठहरे ही रह जाते हैं
मेरे-तेरे स्पर्शो में !