वो दिन
वो दिन
मैं संपूर्ण गगन की रानी हूँ अलबेली हूँ, मस्तानी हूँ
करती हूँ सारे काम अपने दम पर मैं आज़ादी की दिवानी हूँ
तिनका- तिनका जोड़ कर मैं अपना संसार बसाती हूँ
फसल के सुरक्षा के खातिर मैं कीट पतंगे भी खाती हूँ
पराग और बीज़ों को उनकी मंज़िल तक पहुचाती हूँ
सवेरा होते ही मैं सबकुछ भूल कर खुशी से चहचहाती हूँ।
मगर मैंने कभी भी किसी का बुरा नही किया
फिर भी जाने क्यों इंसानो ने मेरा सबकुछ मुझसे छिन लिया
मेरी आज़ादी, घर, जंगल सब पर उन्होंने अपना अधिकार किया
मेरे दोस्तो को उन्होंने सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए मार दिया
मेरे पंजो से दवाई बनाई, मेरे पंखो से घर सजाया
मेरे घर को उजार कर उन्होंने सड़क बनवाया।
मुझे कैद कर रखने को उनका है जी ललचाता है
इतना कुछ करके भी पता नही अब वो क्या चाहता है।
न जाने वो दिन कब आयेगा जब इंसान ये समझ जायेगा
वो जो बोयेगा वही खायेगा।