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Shreya Raj

Abstract Others

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Shreya Raj

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अस्तित्व

अस्तित्व

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क्यों बेचैन है तू ? 

जो सत्य सिसकियाँ भरता है

जो तू झूठा कहलाने से डरता है

ललकार रहे तुझे जो 

ये अनुयायी काल के, 

जो उलझन तेरी

हावी हो रही तेरे अस्तित्व पर

फिर भी क्यों मौन है तू ? 

तेरे कदमों में बँध उन जंजीरों को

जो तू उखाड़ न सकेगा, 

तेरे मन में बसी उलझनों को

जो तो मिटा न सकेगा

याद रखना बस इतना की

तू है तो जहां है तेरा

जो खुद से ही हार जायेगा

तो स्वयं को क्या मुंह दिखायेगा? 

बिन तेरे तू बस नाम मात्र रह जाएगा

इन करोड़ों के बीच कहीं खो जाएगा। 


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