जुनून
जुनून
मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती,
मगर सिर्फ मेहनत करने वालों की हर बार जीत भी नहीं होती।
सफलता की जमीं पर फसल तभी आते है जब मेहनत के बीजों को चाहत और खुशी से सींचा जाए
और ऐसा कभी होगा जब हमारा मन राजी हो ,न की जब उसे जबरन खिचा जाए।
दुनिया की उम्मीदों पर खरा उतरने के खातिर
हम अपनी चाहतों से मुंह मोड़ लेते है
समाज के ताने सुनने के डर से,
हम अपने जुनून को छोर देते है।
बस फिर चल देते है हम उस राह पर जहाँ समाज ले जाए
बेमन से खूब मेहनत करते है ताकि हम डॉक्टर या इंजीनियर बन जाए।
ईश्वर भी कई बार इस बंजर जमीन पर पेड़ लगाने की ख्वाहिश स्वीकार लेते है
और हम नौकरी, ओहदा , पैसे, परिवार की खुशियाँ सब पा लेते है।
इस यात्रा में बस एक चीज छूट जाती है, हमारा जुनून।
क्या यही जीत है?
क्या फायदा उस परिश्रम का जिसके नीचे हमारी चाहत ही दब जाए?
क्या फायदा उस जीत का जो सबकुछ होते हुए भी कुछ न होने का एहसास दिलाए?
ऐसे डॉक्टर के हाथों कुछ आविष्कार नहीं होता।
ऐसे इंजीनियर के हाथों देश का विकास नहीं होता।
तो डर किस बात का है?
अपने जुनून के पीछे भागो, सपनों के पीछे भागो, समाज के पीछे नहीं।
अगर समाज है तो रुकवाटें होगी
अगर कोशिश की तो शिकायतें होगी
अगर तुम गिरे तो उठना होगा
मेहनत करो, एक दिन ऐसा जरूर आयेगा जब रुकावट को तुम्हारे आगे झुकना होगा।
और उस दिन तुम शान सर कह सकोगे की मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती!