वक्त की जाने
वक्त की जाने
वक्त की जाने किस कड़ी में ज़िन्दगी चल पड़ी।
मुसलसल जाने कहा बहार आई है अधरों पड़ी।
ज़िन्दगी मुक्कमल हो गई तेरी जाने कहां खड़ी,
हर घड़ी हर पहर इज़्तिराब सी सुन जहां पड़ी।
हर पहर हर वक्त की वही तेरी "हार्दिक" घड़ी,
कह रही है तुझसे भी अब वक्त की कहां पड़ी।
तेरे अधरों पर बसी मुस्कान हमसे कह के अड़ी,
इकतरफा ज़िन्दगी ख़ुशनुमा तेरी बेख़बर पड़ी।