विश्वास
विश्वास
मैं व्यस्त थी खुद के ही साथ,
क्यों भला आ गए आप मेरे ही पास।
मानती हूं तुम होगे उदास,
पूरी ना हुई होगी कोई तुम्हारी आस।
किसी ने तुमको और तुमने किसी को छला होगा,
यह कैसे सोचा किसी को ना कोई गिला होगा।
अब खुद पर ही कुछ समय रखो विश्वास,
गर किया होगा अच्छा तो होगा हर कोई तुम्हारे ही साथ।
कभी ना कभी तो तुम्हारी भी कीमत समझी ही जाएगी,
आंधियां रुकने के बाद मन पर जमी जो धूल शायद छट ही जाएगी।
जो नुकसान किया होगा वह ना कभी पूरा होगा,
जिसने सबको अकेला किया है वह खुद कैसे भरा पूरा होगा।
मेरे पास भी आओ तो मैं क्या कर पाऊंगी मैंने तो खुद को ही अपना साथी बना लिया-
मैं तो खुद के साथ भी जी जाऊंगी।
फिर भी स्वागत है हर आगंतुक का,
आ ही गए हो तो आओ, बैठो, खाएंगे पीएंगे साथ साथ।
पर याद रखना ना कभी तुम पर होगा विश्वास और ना ही तुम करना कोई विश्वास की बात।
