विश्व-विजेता
विश्व-विजेता
थाम पिता के हाथों को वह भी
सिकंदर-सा विश्व-विजेता बन जाता है।
किसी राज्य की चाह नहीं उसे
ना कोई विशाल सेना ही है पास उसके
फिर भी पिता काँधों पर चढ़
बिना किसी लड़ाई के
चेतक पर सवार वह
मानो महाराणा प्रताप बन
सिकंदर से भी बढ़कर श्रेष्ठ
सिंहासन सहज ही पा जाता है।
इतिहास सिकंदर के खाली हाथों की
कहानी पूरी तन्मयता से बतलाता है।
पर अपनी नन्हीं हथेलियों में
थाम पिता के हाथों को
वह नन्हा बालक
पूरी कायनात का मालिक स्वतः ही बन जाता है।
बस उसी क्षण में वह बालक
एक पिता के निस्वार्थ प्रेम के
परचम को पूरी दुनिया में लहराता है।