विश्व बन्धुत्व
विश्व बन्धुत्व
तार तार हो रहा मनुज अब ,
खतरे में अस्तित्व है
दिन पर दिन आवश्यक होता ,
जाता विश्व बन्धुत्व है।।
बलशाली सत्ता के मद में ,
झूम रहे अलमस्त हैं
शान्ति,एकता, एक मनुजता ,
कोलाहल में पस्त हैं।।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे ,
अपने में निर्लिप्त हैं
पड़ी है कितनी विपदा भारी ,
किकर्तव्य विमूढ़ हैं।।
रक्त वही है ,प्राण वही है ,
मानव मानव एक हैं
सबकी सत्ता सकल एक हैं ,
दिल से बन्दे नेक हैं।।
टुकड़े टुकड़े होकर जीना ,
अब ना हमें मंजूर है
मिटा दो अब हर भेद आपसी ,
समय बड़ा अब क्रूर है।।