विरह
विरह
आज विरह की पीड़ा,
कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी
ये तन्हाई जीवन की दिल
में कुछ ज्यादा ही गढ़ गयी
ये बेताबियाँ मिलने की,
ये मजबुरियाँ छुप रहने की
ये प्यास का बढ़ना यही,
वजह है धड़कनें बढ़ने की
सब कुछ ठीक हो जाये,
तो मिलने भी आ जाये
अभी तो बंद है कमरे में,
अब आये भी तो कैसे आये
आप का भी हाल कुछ,
हमसे अलग तो नहीं
जिस्म से दुर है तो क्या,
दिल से हम अलग तो नहीं
होगा सब कुछ ठीक,
इस उम्मीद पर जी रहे हैं
आप रखो हौसला जरा,
हम जल्दी ही मिलने आ रहे हैं।
