तलाब
तलाब
ज़िन्दगी की तलाश इस कदर गहरी हुई,
बे निशान बे निशान सी ज़िन्दगी हुई।
खुदी के कदमो के निशान ढूंढने थे,
तनहा ज़िन्दगी आवारगी हुई।
इस कदर बढ़ गये रास्तों पर,ढूंढने को मंजिलें,
देखा जो पीछे मुड़ कर तो हैरानगी हुई।
किसी की मुस्कराहट की दरकार थी,
किसी को खुश करना था पर रूसवायगी हुई।
आदत नहीं थी कि हम किसी का गिला करें,
पता नहीं हम से ये कैसी नादानगी हुई।
आफवाहें हमारे बिखरने की जरा सी क्या उड़ी,
हमने सच भी कहा तो आदायगी हुई।
खाइशों ने बांधी जंजीरें पैर में इस कदर,
कैद मे तब्दील हमारी रीहायगी हुई।
इजहार जो हमने क्या कर दिया महफिल में,
इस कदर तमाशा मेरी दिवानगी हुई।
