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विराम

विराम

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आ अब लौट चले शाम हो गई है

जीवन की पंक्ति विराम हो गई है।


गलियों में आवारा फिरते थे,

संमभलते थे कभी गिरते थे,

बचपन बदलकर जवान हो गई है

जीवन की पंक्ति विराम हो गई है।


पढ़ने पढ़ाने मे मशगुल रहते थे

काम मे पल पल चुर रहते थे

जवानी ढल कर आराम हो गई है

जीवन की पंक्ति विराम हो गई है।


अब आराम ही आराम है

ना ही कोई नए आयाम है

वृद्धावस्था भी अब गुमनाम हो गई है

जीवन की पंक्ति विराम हो गई है।


जाने प्रभु ने क्या रचा है

अब कुछ भी नही बचा है ,

अब तो साँसें भी शमशान हो गई है

जीवन की पंक्ति विराम हो गई है।


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