विज्ञापन युग
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आजकल कविताओं का
मूल्य नहीं है
गीत-संगीत का भी नहीं
प्यार का तो
थोड़ा सा भी मूल्य नहीं है।
पर मूल्य बढ़ा है अब
उन वस्तुओं का
जो कभी
बिकी नहीं है .
जो अब बिक रही है।
पानी, आग और हवा भी
बिक रही है अब
लोगों का मान -इज्जत
लोगों की भूख।
देह की सभी अंग -प्रत्यंग
यह विज्ञापन का युग है
माँ-बाप की प्यार
और मातृदुग्ध का तो
मूल्य ही नहीं है।
