विद्यार्थी जीवन....।
विद्यार्थी जीवन....।
यूं तो बेखौफ निडर होते हैं बच्चे,
अपने सपनों से अनजान अपनी ही मस्ती में मस्त रहते,
जब मन करता पढ़ते और खेलते हैं,
थोड़े शरारती थोड़े नौटंकीबाज भी होते हैं,
ढाल दो जिस सांचे में ढल जाते हैं,
प्यार अपनेपन की भाषा को वो जानते हैं,
लड़ाई झगड़ा पल भर में भूल जाते हैं,
ये बच्चे तो कागज के फूल है,
जो मनचाही राहों पर मुड़ जाते हैं,
बेशक मां बच्चों की सबसे बड़ी गुरु कहलाती है,
फिर भी गुरु से मिला ज्ञान का भी उतना महत्व है,
इसलिए बच्चों को विद्यालय में भेजा जाता है,
ताकि सीख सकें शिष्टाचार अनुशासन का भी वो पाठ,
आत्मविश्वासी हो बोलने में सशक्त बने,
और अपनी पहचान बनाएं,
शुरुआती दिनों में बच्चों को होती है मुश्किल,
जाने में करते कभी कभी आनाकानी है,
पर धीरे धीरे नये नये दोस्त बनाते,
क ख ग बोलना भी सीख जाते,
सच कहूं तो स्कूल लाइफ बेस्ट लाइफ होती है,
यह बात बाद में सबको समझ आती है,
और फिर,
उन दिनों को याद कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है,
वो टाई बेल्ट दो चुटिया रिबन लगा कैसे कार्टून लगते थे,
और मटक मटक कर जो हम स्कूल जाते थे,
जाते जाते किसी की खिड़की पर पत्थर फेंक आते थे,
तो कभी स्कूल बहाने खेलने चले जाते थे,
आज बड़े होकर स्कूल जाने का मन करता है,
और पहले स्कूल जाने से भी डर लगता था,
हम भी कितने अजीब है,
जो बीत गया समय उसको याद कर मुस्कुराते हैं
और जो चल रहा समय उसे रो रोकर बिताते हैं।