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SUMAN ARPAN

Tragedy

4  

SUMAN ARPAN

Tragedy

विधवा माँ

विधवा माँ

1 min
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वो देखो बिक गई इक माँ बाज़ार में,

बेबस भूख और मजबूरी हाय! कैसी ये लाचारी !

ममता की मूरत लूट गई बाज़ार में!

काग़ज़,क़सम,दवात के खर्चे..?

बच्चों का तन ढकने को लाएँ कहा से कपड़े?

पूरा करने बच्चों के अरमान,

हो गई इक मॉं नीलाम बाज़ार में!


बच्चों के लिए घर बनाने की ख़ातिर ,

जंग में सम्मान दिलवाने की ख़ातिर ,

तोड़ कर दहलीज़ों आबरू की कर गई हर चौखट पार

 बोली लग गई इक मॉं की बाज़ार में 


सोते हैं बच्चे आज बच्चे मख़मली बिछौनों पर

मॉं पल पल अंगारों से लिपटती है!

 करने को पूरी ज़िम्मेदारियाँ बच्चों की 

सौदा पल पल ज़मीर का करती है 

ख़ुश रह औलाद सदा इस चाह में,

ममता खड़ी चौराहे बिकती हैं !


बदल गया वक़्त और बदल गया समा

हो गए उसके बच्चे अब जवाँ!

टूट गए उस के फिर सारे अरमां !

पाला -पोसा,पढ़ाया-लिखाया,

तो क्या बड़ा काम किया !

जन्म दिया था फ़र्ज़ था तेरा ,

क्या अनोखा तुमने काम किया ?

ख़ाली हाथ खड़ी थी आज रिश्तों के बाज़ार में!


पी पी कर गम के आँसू मर गई माँ संसार में

ख़ुश रहो मेरे बच्चों शाद रहो आबाद रहो!

मैं चली निभा कर फ़र्ज़ अपना !

कुछ देने को नहीं है सिवाये दुआओं के 

लाश की बोली लगालो अब सरे बाज़ार में 


 


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