" विचित्र रोग "
" विचित्र रोग "
कभी इस करवट,
कभी उस करवट,
तड़प रहे थे ,
कसमसा रहे थे ,
बाप -बाप चिल्ला रहे थे !!
"माँ मुझे बचा लो
बाबूजी मुझे बचा लो "
प्राण अब ग्रह में है ,
घर के लोग सब
आ गए ,सब हाक्रोश
करने लगे !!
किसी ने सर को सहलाया
किसी ने " बनफूल " तेल
मेरे बालों में लगाया ,
किसी ने मालिश किया ,
किसी ने मेरी हथेली को सहलाया !!
किसीने जोर से चिल्लाया
"अरे क्यूँ तुम खड़े हो?
इनके पांवों को तुम रगडो़ ,
यदि इनके लाल कार्ड ..
या आयुष्मान कार्ड हो तो
अति शीघ्र लाओ !!"
इतने में डॉक्टर आ गए ,
जांच स्वयं वो करने लगे ,
रोग तो विचित्र था ,
पेट में 'सी ० ए ० ए ०" और
"एन ० आर ० सी ०"
का "कैंसर" था !!
अब इस कैंसर का इलाज
का जुगाड़ हो नहीं रहा है
"ओंकोलोगिस्ट "इसके उपचार से
अपना मुंह फेर रहा है।