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Lakshman Jha

Tragedy

5.0  

Lakshman Jha

Tragedy

" विचित्र रोग "

" विचित्र रोग "

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कभी इस करवट,

कभी उस करवट,

तड़प रहे थे ,

कसमसा रहे थे ,

बाप -बाप चिल्ला रहे थे !!


"माँ मुझे बचा लो

बाबूजी मुझे बचा लो "

प्राण अब ग्रह में है ,

घर के लोग सब

आ गए ,सब हाक्रोश

करने लगे !!


किसी ने सर को सहलाया

किसी ने " बनफूल " तेल

मेरे बालों में लगाया ,

किसी ने मालिश किया ,

किसी ने मेरी हथेली को सहलाया !!


किसीने जोर से चिल्लाया

"अरे क्यूँ तुम खड़े हो?

इनके पांवों को तुम रगडो़ ,

यदि इनके लाल कार्ड ..

या आयुष्मान कार्ड हो तो

अति शीघ्र लाओ !!"


इतने में डॉक्टर आ गए ,

जांच स्वयं वो करने लगे ,

रोग तो विचित्र था ,

पेट में 'सी ० ए ० ए ०" और

"एन ० आर ० सी ०"

का "कैंसर" था !!


अब इस कैंसर का इलाज

का जुगाड़ हो नहीं रहा है

"ओंकोलोगिस्ट "इसके उपचार से

अपना मुंह फेर रहा है।


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