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Surendra kumar singh

Drama

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Surendra kumar singh

Drama

वही मैं हूँ

वही मैं हूँ

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इतिहास की बात है यानि कि

बीता हुआ समय।

घर की चारदीवारी में

उसकी दी हुयी आजादी भर मैं

खुश दिखते हुये


खुश रहते हुये

उसकी शिकायतों को अपनी

खुशी में जज्ब करते हुये

मैं घर सम्भालती रही।


मुस्कराते थे साथ साथ

मैं उसे अपना परमात्मा मानती

और उसकी दी हुई आजादी

को परमात्मा की दी हुयी आजादी।


अक्सर वो मेरी तारीफ में

कहा करता था

कोई घर चलना मुझसे सीखे।

आज जब मैं

एक मोटी तनख्वाह पाती हूँ


समाज मे मेरा रुतबा है

और वो बेरोजगार है

मैं घर सम्भालते हुये

घर भी चलाती हूँ

मेरी उससे जो शिकायतें

जज्ब हो गयी थीं मेरी खुशी में


ख्याल रखती हूँ

उसकी न रहें।

वो आजादी जो उसने मुझे

अपने घर की चारदीवारी में दे रखी थी

उसका विस्तार कर रही हूं मैं उसके लिये

अक़्सर शाम को


चाय पीते वख्त मैं उससे कहा करती हूं

मेरा बटुआ तो तुम्हीं हो डार्लिंग

आखिर हर हाल में

खुश रहने और खुश रखने की

जिम्मेदारी जो मेरी है।


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