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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational Others

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational Others

वह फ़रिश्ता।

वह फ़रिश्ता।

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वह एक फ़रिश्ता 

उससे जन्मों का अनकहा रिश्ता 

छोड़कर घर द्वार सब अपना

सजाए था वह कई सपना

जमात को था जमा रखना

कर कर्म सब जो जज्ब 

दिल दिमाग में था उसके दफन

ठान लिया उसने हटे हर हाल में

मानवता के सिर से कफन।।


खोले मुँह अपना विकराल 

नर्तन कर रहा था काल 

हर बगलगीर परेशान बेहाल 

लाल वह सच्चा माटी के अपने

लगा जोर जगा दिए जीवन के सपने

भूल गया वह दिन और रात 

जहाँ यम का लगा था घात 

कह गया छोड़ दो गम की बात।।


छूट रही थी वक्त की सबसे यारी

चक्र अराति की बन रही थी भारी

थी निर्वाण से लुका छिपी जारी

उसकी बारी जब से थी आई

लड़ी उसने वह कड़ी लड़ाई

जो सत्य समाधान लेकर आई

उसका उद्धम गया न खाली

श्वेत चेहरों पर छाई फिर लाली।।


सुन लो जो कह जाए वह

बचने बचाने का इक राह यह

न हो कोताही, बरतनी है सावधानी

चुप से सह लो उसकी फटकार 

देव का दूत अपना वह डॉक्टर 

देव का दूत अपना वह डॉक्टर।।

            


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