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Chandramohan Kisku

Tragedy

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Chandramohan Kisku

Tragedy

वह बुहार रही थी

वह बुहार रही थी

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वह बुहार रही थी

छटका।

वह बुहार रही थी

दुःख और कष्टों को

एक-एक कर

छटका में पड़ी

गन्दगी के जैसा।

वह इकट्ठा कर रही थी

जो उसकी बेटे ने कही थी

आज सुबह ही

मरो

उसे स्मरण हो आया

अपने बेटे की बचपन

बुहारते हुए।

वह इकट्ठा कर रही थी

अपनी आँखों से

निकल रही

दुःख और कष्ट की

बूँद -बूँद



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