वह बंद मकान
वह बंद मकान
गली के मुहाने पर
बंद सा एक मकान
अपनी खामोश उदासियों
में भीगा सा
जाने क्यूँ पुकारता
रहा मुझे
बरसों पहले
उसके बंद कपाटों से
आती महक
तेरा जिक्र होते ही फिर छा गयी।
गली के मुहाने पर
बंद मकान की
एक छोटी खिड़की
अपनी बंद आँखों से देखती है मुझे
उसकी नजरों में अटका
वह स्नेहिल कतरा
आज भी नमी छोड़ता है
मेरी आँखों में
जब उसे देखकर
तेरा चेहरा दिखाई देता है।
गली के मुहाने पर
बंद से मकान के
उस उदास आँगन में
सूखा उजाड़ तुलसी चौरा
आज भी बाँधता है
मर्यादा की वह रेखा
और लौट आता हूँ मैं
एक नजर देखकर
कि बंद मकान की
रुसवाइयों में
तेरा नाम गवारा नहीं है मुझे।
लेकिन फिर भी
बंद गली के मुहाने पर
खड़ा वह मकान
तेरे होने न होने के बीच
एक आस बंधाता है।

