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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Tragedy Others

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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Tragedy Others

वाह रे प्रभु ये तेरी कैसी अजब सी माया है,

वाह रे प्रभु ये तेरी कैसी अजब सी माया है,

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वाह रे प्रभु ! ये तेरी कैसी अजब सी माया है,

जिसे आज तक भी न कोई समझ पाया है।।


देखो और समझो -

मंदिरों के बेजुबान पत्थरों पे लदे हुये हैं करोड़ों के गहने,

और उसी दहलीज पे एक रूपए को तरसते नन्हे हाथों को देखा है, 

सजते है जहां छप्पन भोग के साथ मेवे मूरत के आगे,

वहीं बाहर अकसर फकीरों को भूख से तड़पते देखा है,

सजीं हुई हैं जहां हजारों चादरों से मज़ारें,

वहीं बाहर एक बूढ़ी मां को ठंड से ठिठुरते देखा है।

दे आये जो लाखों दया धर्म के नाम पर,

उसी के घर में आज चंद पैसों के खातिर बूढ़े नौकर को बदलते देखा है।

वाह रे प्रभु ! ये तेरी कैसी अजब सी माया है,

जिसे आज तक भी न कोई समझ पाया है।।


जिन्होंने न दी कभी जीतें जी अपने मां बाप को रोटी ,

आज उनको ही मरने के बाद, भंडारे लगाते देखा है।

सुना है चढ़ा था कोई सूली पे, दुनिया का दर्द मिटाने को,

आज उसी बेटे की मौत पे रोते बिलखते माता पिता को देखा है।

समाज की दुहाइयां देकर मजबूरन ब्याह दिया था बेटी को जिस बाप ने,

आज उसी शौहर के हाथों सरे आम बेआबरू होते देखा है।

वाह रे प्रभु ! ये तेरी कैसी अजब सी माया है,

जिसे आज तक भी न कोई समझ पाया है।।


वाह रे प्रभु ये तेरा कैसा चमत्कार है,

जिस हादसे में कल बेमौत मारा गया था जो पंडित,

उसे ही हर बाधा का हल मिटाते देखा है। 

जिस घर को एकता की मिसाल देता था जमाना,

आज उसी आंगन में रिश्तों को टूटकर बिखरते देखा है।

वाह रे प्रभु ! ये तेरी कैसी अजब सी माया है,

जिसे आज तक भी न कोई समझ पाया है।।


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